Four Letters Of Engels On The Death of Karl Marx, 1883

एंगेल्स के चार पत्र

1. एंगेल्स का जोहान फिलिप बेकर को पत्र

लन्दन, 15 मार्च, 1883

प्रिय मित्र,

इस बात के लिए अपने भाग्य को सराहो कि तुमने पिछले शरदकाल में मार्क्स को देख लिया था क्योंकि अब तुम उन्हें कभी नहीं देख सकोगे. कल दोपहर को पौने तीन बजे उन्हें दो मिनट से भी कम के लिए अकेला छोड़ने के बाद हमने उन्हें आरामकुर्सी पर शांति से सोते हुए पाया. हमारे दल के सबसे महान मस्तिष्क ने सोचना बन्द कर दिया. संभावना यही है कि अंदर ही अंदर कोई खून की नस फट गयीं.

सन 1848 के दल में से अब करीब करीब हम दोनों ही बचे हुए हैं. खैर, हम मोर्चे पर डटे रहेंगे. गोलियाँ सनसना रही हैं, हमारे मित्र चारों तरफ गिर रहे हैं पर यह पहली बार तो है नहीं जब कि हम दोनों ने यह देखा है. यदि हममें से किसी को गोली लग जाय तो लगने दो. मैं यही चाहता हूँ कि वह ठीक निशाने पर लगे और हमें देर तक यातना न दे.

तुम्हारा पुराना साथी
एफ. एंगेल्स

 

2. एंगेल्स का विलहम लीबनेख्ट को पत्र

लन्दन, 14 मार्च, 1883

प्रिय लीबनेख्ट,

यद्यपि मैंने आज शाम को शैय्या पर अंतिम विश्राम करते हुए उनके चेहरे को देखा जिस पर मृत्यु की निर्जीवता थी तब भी मैं पूरी तरह नहीं समझ सकता कि उस अद्भुत मस्तिष्क ने अपने महान विचारों से दोनों दुनिया के सर्वहारा आन्दोलन को प्रेरित करना बंद कर दिया. जो कुछ हम हैं वह उन्हीं के कारण हैं. और जैसा आजकल आन्दोलन का रूप है वह उनके सैद्धांतिक और व्यावहारिक परिश्रम की रचना है. यदि वह न होते तो हम लोग अभी तक अनिश्चय की भूलभुलैया में टटोल रहे होते.

तुम्हारा -
एफ. एंगेल्स

 

3. एंगेल्स का बर्नस्टाइन को पत्र

लन्दन, 14 मार्च, 1883

प्रिय बर्नस्टाइन,

तुम्हें अब तक मेरा तार मिल गया होगा. सब कुछ बहुत ही अचानक हो गया. जब हमारी आशा खूब बढ़ गयी थी तब एकाएक उनकी ताकत ने जवाब दे दिया और आज दोपहर को वह सोते हुए ही चल बसे. दो मिनट में उनके अद्भुत दिमाग ने सोचना बंद कर दिया और यह उस समय जब डाक्टरों ने उनके अच्छे होने की पूरी आशा दिलाकर हमें प्रसन्नता से भर दिया था. जो आदमी उनके साथ बहुत दिन तक रहा है वही यह समझ सकता है कि बड़े - बड़े फैसले करने के समय सिद्धांत में और व्यवहार में उनका क्या मूल्य था. बरसों तक उनकी महान दूरदर्शिता उन्हीं के साथ छिपी रहेगी. वह ऐसा गुण था जिसकी हम लोगों से और किसी में क्षमता नहीं है. आंदोलन चलता रहेगा परन्तु उसमें उस सुयोग्य बुद्धि की शांत और समयानुकूल शिक्षा की कमी होगी जिसने बीते हुए युग में हमें बहुत सी भूलों से बचाया.

अधिक फिर लिखूंगा. अब आधी रात हो गयी है और दोपहर और शाम भर मैं पत्र लिखता और तरह - तरह का काम करता हुआ इधर से उधर भागता रहा हूँ.

तुम्हारा -
एफ. एंगेल्स

 

4. एंगेल्स का फ्रेडरिक एन्टन सौर्ज को पत्र

लंदन, 15 मार्च, 1883

प्रिय सौर्ज,

पिछले छ: हफ्तों से रोज सुबह मुझे बड़ा डर लगा रहता था कि कहीं सड़क के कोने से घूमकर मैं यह न देखूँ कि खेल खत्म हो गया. कल दोपहर को ढाई बजे - जो उनसे मिलने का सबसे अच्छा समय होता है - मैं पहुँचा तो मैंने सारे घर को रोते हुए पाया. यह मालूम होता था कि अंत समीप है. मैंने पूछा कि क्या हुआ और सान्त्वना देने के लिये असली मामला जानने की कोशिश की. अंदर ही अंदर उनकी कोई नस फट जाने से थोड़ा सा खून बहा था परन्तु हालत बड़ी तेजी से बिगड़ने लगी थी. बेचारी लेन्चेन जिसने माँ से ज्यादा अच्छी तरह उनकी देख - भाल की थी उनके पास ऊपर गयी और फिर नीचे आ गयी. उसने कहा कि वह आधे सोये से हैं परंतु आप अंदर जा सकते हैं. जब हम कमरे में घुसे तो वह सदा के लिये सोये पड़े थे. उनकी नाड़ी और साँस बंद हो गया था.

जो घटनाएँ प्राकृतिक आवश्यकता से होती हैं वे चाहे कितनी ही भयानक क्यों न हों, वे सब अपने साथ आश्वासन भी लाती हैं, ऐसा ही वहाँ भी है. डाक्टरी कौशल शायद उन्हें जड़ जीवन के कुछ और साल प्रदान कर देता. डाक्टरी कला की विजय इसमें होती कि उन्हें ऐसे असहाय मनुष्य का जीवन मिल जाता जो एकाएक नहीं, धीरे - धीरे मरता. परंतु हमारे मार्क्स कभी इसे

नहीं सह पाते कि उनकी सब रचनाएँ अधूरी रह जातीं, पर उनको समाप्त करने की इच्छा से परेशान रह कर भी उन्हें पूरा करने में असमर्थ रहते. यह जीवन तो उस शांत मृत्यु से हजार बार बुरा होता जो उन्हें प्राप्त हुई. एपिक्यूरस को उद्धृत करते हुए वह कहा करते थे कि मृत्यु उसके लिये दुर्भाग्य नहीं है जो मर जाता है बल्कि उसके लिये है जो जिन्दा रह जाता है. उस महान व्यक्ति को चिकित्सा - शास्त्र के यश के लिये शारीरिक खंडहर के रूप में जीते रखना, ताकि नौसिखियों को जिन्हें अपने ताकत के जमाने

में उन्होंने कितनी ही बार पराजित किया था उन पर हँसने का मौका मिले - नहीं, इससे तो यही हजार बार बेहतर है - यह हजार बार बेहतर है कि दो दिन बाद कब्र में ले जायँ जहाँ उनकी पत्नी विश्राम कर रही है.

इसके पहले जो कुछ हो चुका था - जिसके बारे में डाक्टरों को उतना नहीं मालूम जितना मुझे - उसके बाद मेरी राय में और कोई रास्ता नहीं था.

चाहे जो हो, मानवता का एक अपूर्व मस्तिष्क कम हो गया है, और वह भी हमारे जमाने का सबसे बड़ा मस्तिष्क. सर्वहारा - आंदोलन आगे बढ़ रहा है. परंतु उसका वह प्रमुख व्यक्ति चला गया जिसकी ओर संकट काल में फ्रांसीसी, रूसी, अमरीकन, जर्मन सब देखते थे और हमेशा ऐसी स्पष्ट और निर्विवाद सलाह पाते थे जो केवल वही व्यक्ति दे सकता है जिसे परिस्थिति का पूरा ज्ञान हो. अगर ढपोर शंख नहीं तो स्थानीय'' विद्वानों'' और छोटे - छोटे दिमागों को अब मैदान साफ ​​मिलेगा. अंतिम जीत तो निश्चित है परंतु टेढ़े - मेढ़े रास्ते, स्थानीय और अस्थायी भूलें जिनसे बचना अब भी इतना मुश्किल है, बहुत बढ़ जायेंगी. खैर, हमें तो इसे पार लगाना होगा. हम यहाँ है और किस लिये?

और अभी हम हिम्मत नहीं हार रहे हैं!

तुम्हारा -
एफ. एंगेल्स